मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

आर्थिक उदारीकरण, श्रम का उदारीकरण और भूमंलीकरण

आर्थिक उदारीकरण, श्रम का उदारीकरण और भूमंलीकरण

आर्थिक उदारीकरण है- पूंजी के प्रवाह में किसी देश या राष्ट्र की सीमा का बाधक नहीं बनना। कहने का मतलब यह है कि पूंजी निवेश के लिए कोई देश रूकावट पैदा नहीं करे और किसी देश का खासकर अमेरिकी पूंजीपति पूंजी के प्रवाह यानि निवेश दुनिया के किसी भी देश में कर सके, इसलिए अमेरिकन पूंजीपति को देश की जमीन सेज के नाम पर दिया गया (करीब 3 लाख एकड़) जिस पर देश का संविधान भी लागू नहीं होगा। सेज पर जो उत्पादन होगा वह कर मुक्त होगा और मजदूर कानून भी लागू नहीं होगा, यही है आर्थिक उदारीकरण जिसमें किसी एक देश के पूंजीपति अब विश्व के नागरिक बनना चाहते हैं।

आर्थिक उदारीकरण तो लागू है लेकिन श्रम का उदारीकरण लागू नहीं है। श्रम के प्रवाह में राष्ट्र की सीमा बाधक है। कहने का मतलब है कि किसान और मजदूर अपने देश से बाहर जाकर काम करने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, उन्हें अपने देश से बाहर काम करने के लिए अपनी सरकार से इजाजत लेनी पड़ती है। पूंजी के साथ ऐसी बाध्यता नहीं है, वो स्वतंत्र है कहीं भी जाने के लिए। इसलिए कहा जाता है कि पूंजीपति का कोई देश नहीं होता, उसके लिए सिर्फ बाजार होता, जिसका मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना होता है। देश सांमत और किसान मजदूर का होता है जबकि राष्ट्र खास नस्ल का होता है।

आर्थिक उदारीकरण के कारण चूंकि किसी देश की सीमा अवरोधक नहीं है, इसलिए पूरे भूमंडल के पूंजी के स्थापित साम्राज्य को भूमंडलीकरण कहा जाता है।
जब पूंजी का उदारीकरण लागू है तो श्रम का उदारीकरण क्यों नहीं ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें