शनिवार, 12 दिसंबर 2009

विरोधों की एकता और संघर्ष

विरोधों की एकता और संघर्ष

कार्ल मार्क्स ने विरोधों की एकता संघर्ष में मजदूर और पूंजीपति के बीच एकता और संघर्ष को एक साथ पिरोया है, क्योंकि पूंजी के विकास के पलस्वरूप ही सर्वहारा वर्ग का जन्म होता है। दूसरी ओर सर्वहारा का हमेशा पूंजीपति वर्ग से ही टकराहट होती है। यही नियम भौतिक विज्ञान का है कि एक ही बल जो केन्द्र पर लगता है। वही बल परिधि की ओर भी लगता है जैसे अंगुली पर जो रिंग से पत्थर को जहां एक तरफ अपनी ओर खींचता है वहीं दूसरी तरफ पत्थर भी अंगुली से दूर भागना चाहता है।

यही बात व्यवसायी और पुरोहित चाहे वह हिन्दू पुरोहित हो या मुसलमान पुरोहित हो, पर भी लागू होता है। आज एक तरफ पुरोहित वर्ग पुरातन की ओर वापस जाने का जोर मार रहा है। वहीं दूसरी ओर व्यवसायी जो आधुनिकता का प्रतीक है, हर पुरानी जीवन पद्धति को बदलकर नई जीवन पद्धति की ओर भाग रहा है। जहां प्रतिदिन फैशन का शो रूम खोलकर व्यवसायी अपने व्यापार के अनुकुल बनाता है। इसलिए नयी और पुरातन, व्यवसायी और पुरोहित वर्ग के बीच टकराहट होती है।
जब गरीब जनता के जीने की हक बात आती है तो ये दोंनो वर्ग एक साथ हो जाते हैं। यही व्यवसायी वर्ग हर काल में पुरोहित वर्ग का खुराक – मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर का निर्माण पुरोहित वर्ग के लिए किया है और पुरोहित वर्ग के हर सुख-सुविधा का ख्याल रखा। इसलिए पुरोहित और व्यवसायी वर्ग आपस में टकराता भी और दोनों का हित एक साथ रहने में भी है।

आज देश में धर्म प्रचार के लिए पुरोहित वर्ग को व्यवसायी वर्ग से भरपूर सहयोग प्राप्त हो रहा है। वहीं पुरोहित वर्ग के द्वारा व्यवसायी को भरपूर सहयोग पूंजी के उदारीकरण के रूप में मिल रहा है। आज बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से टेलीविजन में भक्ति का शोर मच रहा है।
यही है विरोधों की एकता और संघर्ष का अंतर्द्वन्द्व। हिन्दुस्तान में पूरे 700 वर्ष तक मुसलमानों का शासन रहा, लेकिन भारत का पुरोहित वर्ग कभी भी इस्लामी शासन के खिलाफ विद्रोह नहीं किया, जबकि बौद्ध शासन को खत्म करने के लिए हर हथकंडे अपनाए।

विश्व हिन्दू परिषद और तालिबान के बीच एक गहरा रिश्ता है, दोंनो का ड्रेस आन्दोलन एक तरह का है। तालिबान जहां मुस्लिम महिला को बुर्का पहनने के लिए बाध्य करता है, वहीं विश्व हिन्दू परिषद हिन्दू लड़की को एक खास किस्म का ड्रेस पहनने के लिए आन्दोलन करता है। यही है विश्व के सारे पुरोहित वर्ग जो एक पुरातन प्रतीक को पहचान बनाना चाहता है और पूंजीपति व्यवसायी जो आधुनिकता को प्रतीक बनाना चाहता है, के बीच अंतर्द्वन्द्व।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें