शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

देश बनाम राष्ट्र

देश बनाम राष्ट्र

किसी भी देश का संबध उस भूखंड से होता है जिस पर जनसमुदाय निवास करता है और उस भुखंड की सीमा रक्षा का दायित्व उस भूखंड आश्रित सामंत और किसान और किसान मजदूर का होता है। जबकि राष्ट्र का संबंध उस भूखंड पर निर्मित संस्कृत से होता है। जैसे किसी खास वस्तु का विनिमय क्षेत्र वह उस वस्तु का बाजार कहलाता है जैसे गेंहू कोयला तेल का विनिमय क्षेत्र पूरी दुनिया है, तो गेहू का बाजार कोयला का बाजार या तेल का बाजार विश्वतरीय है। उसी तरह किसी नस्ल की सांस्कृतिक इकाई का क्षेत्र जहां तक हो उस नस्ल का राष्ट्र वहां तक फैला हुआ माना जाएगा, यानि जहां तक किसी नस्ल की संस्कृति का विस्तार होता है, वह उसका राष्ट्र है। जैसे 1948 तक यहूदी का कोई देश नहीं था क्योंकि यहूदी दुनिया के देशों में फैला हुआ था। लेकिन यहूदी राष्ट्र जिंदा था, इसलिए फिलिस्तीन में यहूदी को बसाया गया था और पूरी दुनिया से छिटपुट यहूदी नें इजराइल में बसना शुरू कर दिया और अपने राष्ट्र को एक राष्ट्र राज्य में स्थापित किया।


गुरुवार, 26 नवंबर 2009

भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार

सत्ता और संपत्ति के बीच के बीच हुआ समझौता भ्रष्टचार कहलाता है। कोई कंपनी किसी नौकरशाह को इसलिए घुस देता है क्योंकि नौकरशाह के पास सत्ता (शक्ति, पावर) है, नहीं तो कोई कंपनी किसी को क्यों संपत्ति हस्तांतरण करेगा और यदि किसी के पास संपत्ति ही नहीं हो तो घूस का प्रश्न भी नहीं उठता है। इसमें दोंनों एक दूसरे को लाभ पहुंचाता है। घूस के कारण नौकरशाह अनैतिक कार्य (अधिकार से बाहर) भी करता है जैसे किसी सार्वजनिक क्षेत्र को जब निजीकरण किया जाता है उसमें दोंनों आपस में 50-50 का अंशदान प्राप्त करता है। सौ करोड़ की संपत्ति जब किसी कंपनी को बेचा जाता है तो उसका मूल्य मात्र 20 लाख का मूल्यांकन किया जाता है और शेष दोंनों के बीच बंटवारा हो जाता है, इसी प्रकार हर सौदे में यही प्रक्रिया चलती है।
       
सब्सिडी अभी तक इसलिए चालू है क्योंकि कंपनी और नौकरशाह के बीच भ्रष्टाचार का रिश्ता है जैसे जनवितरण प्रणाली में ही 40 प्रतिशत फर्जी कार्ड है और इस फर्जी कार्ड को दिखाकर सब्सिडी के बढे हुए हिस्से का बंटवारा होता है।

सोमवार, 16 नवंबर 2009

राजनीति का अपराधीकरण

राजनीति का अपराधीकरण

सत्ता और संपत्ति में घालमेल है, यानि दोनों एक दूसरे में परिवर्तित होते रहते हैं। सत्ता का धर्म सामंती होता है। सामंती चरित्र कबिले का धर्म होता है। प्राचीन काल से आज तक कबीलों ने राज्य का का निर्माण किया है। आज पूंजीवादी शक्ति की प्रधानता बढ गयी है यानि संपत्ति की प्रधानता बढ गयी और सामंतवादी शक्ति सुप्त अवस्था में चला गया है, इसलिए पूंजीवादी लोकतंत्र पुराने सामंतवाद को कमजोर करने के लिए एक दूसरे को संपत्ति से मदद करते हैं और उसे गुंडो के रूप में इस्तेमाल भी करते है, इस अवस्था को राजनीति का अपराधीकरण कहते है, यानि राजनीति सत्ता में बने रहने के लिए अपराध का सहारा लेती है। लेकिन कुछ समय बाद यही गुंडा (अपराधी ) जब राजनिति में प्रवेश कर सांसद और विधायक बन जाता तो है वह अवस्था राजनीति का अपराधीकरण नहीं बल्कि अपराधी का राजनितिकरण हुआ।

 अपराधी भी दो प्रकार के होते हैं एक आर्थिक अपराधी और दूसरा शारीरिक अपराधी और दोनों अपराधी एक दूसरे के सहयोगी होते हैं। लगभग 2-1 राजनितिक दल को छोड़कर सभी दल अपराधी का उपयोग करता है और जिस राजनितिक दल को आर्थिक अपराधी का सहयोग जितना अधिक मिलता है वह उतना ताकतवर होकर आता है। यह अवस्था हमेशा से रहा है लेकिन जब से जनता का राजनितिकरण हुआ है, अपराधीकरण की प्रक्रिया भी तीव्र हुआ है। आजादी के बाद सामंत मजबूत स्थिति में था इसलिए आम जनता उनकी बातों को ही शिरोधार्य मानकर कांग्रेस पार्टी को मत दिया करते थे और जब जनवादी शक्ति और सामाजिक न्याय की शक्ति के द्वारा जनता को राजनितिक चेतना से तैयार किया गया और जब आम जनता अपने मन से अपना राजनीतिक मत (वोट ) देना चाहा तो सामंती शक्ति के द्वारा या तो आम जनता को धमकाना शुरू किया गया या उनके मत जबर्दस्ती लुटने की शुरूआत की गयी।

दुर्भाग्यवश राजनीति एक ऐसा विषय है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को विशेषज्ञ मानता है चाहे उसने इस विषय का क्रमबद्ध अध्ययन किया हो अथवा नहीं। दूसरी परिभाषा जो राजनिति की है –शासन करने के लिए अपनायी गयी नीति को ही राजनीति कहते हैं। राजनीति सत्ता में पहुंचने का एक जरिया है, एक रास्ता है। सत्ता का अपना कोई वजूद नहीं होता है। सत्ता एक प्रेत है, एक मुखौटा है जो जिस राजनीति के चेहरे पर मुखौटे के रूप पहनी जाती है राजनीति सत्ता की बात बोलने लगती है। सत्ता का धर्म है निरंकुश होना, यानि सत्ता निरंकुश हुए बिना शासन कर ही नहीं सकती है, इसलिए निरंकुशता ही अपराध है। कहने का मतलब यह है कि राजनीति जब से लोगों के दिमाग में आई, तब से अपराध उसका अभिन्न अंग बन गया।

21वीं सदी और आतंकवाद

21वीं सदी और आतंकवाद

किसी भी क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया होती है। एक ओर जहां अमेरिकी साम्राज्यवाद शोषण का प्रतीक है वहीं ओसामा बिन लादेन आतंकवाद का प्रतीक करार दिया गया है जबकि शोषण के विरूद्ध प्रतिक्रिया शोषित होना चाहिए था। प्रतिक्रिया हमेशा विपरीत दिशा में होती है न कि टेढे मेढे दिशा की ओर। जिस प्रकार शोषक वर्ग हमेशा अल्पमत मे होता है इसलिए प्रतिक्रिया भी हमेशा अल्पमत ही होती है। 90 प्रतिशत जनता न तो शोषक वर्ग के पक्ष में होता है न ही आतंकवाद के पक्ष में। 90 प्रतिशत जनता क्रिया और प्रतिक्रिया हीन अवस्था में दोंनो से समझौता करके जीती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि 90 प्रतिशत जनता शोषण को सहर्ष स्वीकार कर लेती है। 90 प्रतिशत जनता के दिल में आक्रोश तो होता है लेकिन आक्रोश को मूर्त रूप देने की क्षमता नहीं होती है और इसी आक्रोश को खत्म करने के लिए ढाल के रूप में धर्म की घुट्टी पिलाई जाती है।

जैसा कि वर्तमान में पूरे विश्व स्तर पर प्रत्येक धर्म का मठाधीश कबिलाई रूप में अपने-अपने धर्म का प्रचारक बनकर घूम रहा है। इसी का नतीजा है कि पूरे यूरोप और अमेरिका का गोड़ा इसाई मिशनरी ईसा मसीह का चेला बनाने का होड़ लगाए हुए है और अरब देश इस्लाम का झंडा बुलन्द कर रहा है जबकि समूचा अरब जगत का शासक अमेरिका के पीछे ही गोलबंद है तो फिर किस इस्लाम से लड़ाई लड़ी जाती है। आखिर अरब जगत और बाकी इस्लामिक जगत में शासक वर्ग जब मुसलमान नहीं है तो क्या सिर्फ गरीब जनता ही मुसलमान है और गरीब जनता ही इसाई है।

 इसी तरह भारत में पूरे सात सौ वर्षों तक मुसलमान शासक होने के बावजूद कभी अभिजात वर्ग ने मुसलमान शासक के खिलाफ विद्रोह नहीं किया है और इतिहास में कहीं भी हिन्दू और मुसलमान संघर्ष नहीं हुआ क्योंकि पूरे मुगल काल में वर्ण व्यवस्था का पालन किया जाता रहा था जो कि धर्म आधारित था। चूंकि भारत में वर्ग ही वर्ण है इसलिए गरीब जनता मुसलमान होते हुए भी मुस्लिम शासक से न्याय की मांग किए तो मुस्लिम शासक ने हजारों मुस्लम गरीब जनता को मौत के घाट उतार दिया।

इसलिए जब कभी गरीब जनता चाहे वह इसाई धर्म में विश्वास करता हो या इस्लाम या हिन्दू धर्म में विश्वास करता हो उसे शासक वर्ग के द्वारा एक समान भाव से कुचला जाता है। इसलिए जब कभी गरीबों के बीच से अल्पमत आतंकवाद. नक्सलवाद, उग्रवाद अलगाव के रूप में प्रकट होता है तो गरीब जनता के बहुमत के दिल में राहत मिलती है।

इसलिए जब शोषण का प्रतीक अमेरिकन पेंटागन, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और ह्वाइट हाउस पर हमला किया गया तो पूरी दुनिया का शासक वर्ग एक हो गया। आखिर पूरी दुनिया का शासक वर्ग एक व्यक्ति के खिलाफ हो जाए यह बात सामान्य सोच के बाहर की बात है लेकिन ऐसा ही हुआ ओसामा बिन लादेन के खिलाफ क्यों? इसकी गहराई में जाने की जरूरत है चूंकि अल्पमत शासक वर्ग के खिलाफ आतंकवादी भी अल्पमत में होता है और 90 प्रतिशत जनता का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए शोषित जनता की प्रतिक्रिया को सीमित रूप देने के लिए शोषक शोषक वर्ग ने भी अपने क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया को अल्पमत ही नहीं बल्कि एक व्यक्ति के खिलाफ स्वरुप देना चाहता है।

इसलिए सर्वप्रथम तो जार्ज बुश ने एक शब्द में इस्लामिक आतंकवाद की संज्ञा दिया जिससे कि बहुमत को इस्लाम बनाम अन्य किया जा सके और फिर इस्लामिक आतंकवाद से भय खाए या डरे तो इसे मात्र एक व्यक्ति ओसामा बिन लादेन के उपर केन्द्रित किया जा सके ताकि इस्लामिक जनता को अलग किया जा सके, जबकि रूस के समाजवाद को ध्वस्त करने के लिए उसी लादेन का
पूंजीवादियों (अमेरिका) के द्वारा उपयोग किया गया था।

सोमवार, 9 नवंबर 2009

त्रिगुट बैठक चौकन्ना अमेरिका

त्रिगुट बैठक चौकन्ना अमेरिका

त्रिगुट देश जिसमें शामिल हैं चीन, रूस, भारत। इन तीन देशों के विदेश मंत्रियों की जब भी बैठक होती है, तब अमेरिका चौकन्ना हो जाता है कि कहीं अंतराष्ट्रीय राजनीति में ये त्रिगुट देश कहीं अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती तो नहीं देने वाले हैं । हाल में जब ब्राजील, रूस, भारत,चीन की बैठक रूस के येरिकेटिनबर्ग में हुई थी तब अमेरिका विशेष रूप से चौकन्ना हुआ था। इस बैठक में रूस और चाइना ने इस बात को पुरजोर तरीके से उठाया था कि डॉलर के मुकाबले एक नयी मुद्रा का विकल्प अंतराष्ट्रीय राजनीति होना चाहिए।

वर्तमान समय में डॉलर का वजूद इतना मजबूत है कि इसके लिए एक युद्ध भी हो चुका है। कहा जाता है अमेरिका ने ईराक पर हमला इसलिए किया था कि सद्दाम हुसैन अपना सारा तेल का कारोबार डॉलर को छोड़कर दूसरी मुद्रा में अपनाने की सोच रहे थे जो कि अमेरिकी साम्राज्यवाद को कबूल नहीं था। कबूल इसलिए नहीं था कि अगर एक देश तेल का कारोबार डॉलर को छोड़कर दूसरी मुद्रा में करता तो हो सकता था कि आगे आने वाले समय में ओपेक का पूरा कारोबार ही दूसरी मुद्रा हो सकने की संभावना थी और हो सकता था कि इससे अमेरिकी डॉलर को ही पूरे अंतराष्ट्रीय राजनीति में चुनौती मिलने लगती।

ऐसे समय में जब यूरोपीय देश एक नयी मुद्रा यूरो को 1999 में अपना चुका है। खाड़ी देश भी एक नयी मुद्रा अपनाने की सोच रहा है तो भारत को भी चीन और रूस के साथ एक नयी मुद्रा का विकल्प डॉलर के मुकाबले खोजना चाहिए। एक नयी मुद्रा का विकल्प डॉलर के मुकाबले खोजना चाहिए, इससे भले ही अमेरिकी डॉलर को अंतराष्ट्रीय राजनीति में चुनौती मिले या अमेरिका चौकन्ना हो।