सोमवार, 16 नवंबर 2009

21वीं सदी और आतंकवाद

21वीं सदी और आतंकवाद

किसी भी क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया होती है। एक ओर जहां अमेरिकी साम्राज्यवाद शोषण का प्रतीक है वहीं ओसामा बिन लादेन आतंकवाद का प्रतीक करार दिया गया है जबकि शोषण के विरूद्ध प्रतिक्रिया शोषित होना चाहिए था। प्रतिक्रिया हमेशा विपरीत दिशा में होती है न कि टेढे मेढे दिशा की ओर। जिस प्रकार शोषक वर्ग हमेशा अल्पमत मे होता है इसलिए प्रतिक्रिया भी हमेशा अल्पमत ही होती है। 90 प्रतिशत जनता न तो शोषक वर्ग के पक्ष में होता है न ही आतंकवाद के पक्ष में। 90 प्रतिशत जनता क्रिया और प्रतिक्रिया हीन अवस्था में दोंनो से समझौता करके जीती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि 90 प्रतिशत जनता शोषण को सहर्ष स्वीकार कर लेती है। 90 प्रतिशत जनता के दिल में आक्रोश तो होता है लेकिन आक्रोश को मूर्त रूप देने की क्षमता नहीं होती है और इसी आक्रोश को खत्म करने के लिए ढाल के रूप में धर्म की घुट्टी पिलाई जाती है।

जैसा कि वर्तमान में पूरे विश्व स्तर पर प्रत्येक धर्म का मठाधीश कबिलाई रूप में अपने-अपने धर्म का प्रचारक बनकर घूम रहा है। इसी का नतीजा है कि पूरे यूरोप और अमेरिका का गोड़ा इसाई मिशनरी ईसा मसीह का चेला बनाने का होड़ लगाए हुए है और अरब देश इस्लाम का झंडा बुलन्द कर रहा है जबकि समूचा अरब जगत का शासक अमेरिका के पीछे ही गोलबंद है तो फिर किस इस्लाम से लड़ाई लड़ी जाती है। आखिर अरब जगत और बाकी इस्लामिक जगत में शासक वर्ग जब मुसलमान नहीं है तो क्या सिर्फ गरीब जनता ही मुसलमान है और गरीब जनता ही इसाई है।

 इसी तरह भारत में पूरे सात सौ वर्षों तक मुसलमान शासक होने के बावजूद कभी अभिजात वर्ग ने मुसलमान शासक के खिलाफ विद्रोह नहीं किया है और इतिहास में कहीं भी हिन्दू और मुसलमान संघर्ष नहीं हुआ क्योंकि पूरे मुगल काल में वर्ण व्यवस्था का पालन किया जाता रहा था जो कि धर्म आधारित था। चूंकि भारत में वर्ग ही वर्ण है इसलिए गरीब जनता मुसलमान होते हुए भी मुस्लिम शासक से न्याय की मांग किए तो मुस्लिम शासक ने हजारों मुस्लम गरीब जनता को मौत के घाट उतार दिया।

इसलिए जब कभी गरीब जनता चाहे वह इसाई धर्म में विश्वास करता हो या इस्लाम या हिन्दू धर्म में विश्वास करता हो उसे शासक वर्ग के द्वारा एक समान भाव से कुचला जाता है। इसलिए जब कभी गरीबों के बीच से अल्पमत आतंकवाद. नक्सलवाद, उग्रवाद अलगाव के रूप में प्रकट होता है तो गरीब जनता के बहुमत के दिल में राहत मिलती है।

इसलिए जब शोषण का प्रतीक अमेरिकन पेंटागन, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और ह्वाइट हाउस पर हमला किया गया तो पूरी दुनिया का शासक वर्ग एक हो गया। आखिर पूरी दुनिया का शासक वर्ग एक व्यक्ति के खिलाफ हो जाए यह बात सामान्य सोच के बाहर की बात है लेकिन ऐसा ही हुआ ओसामा बिन लादेन के खिलाफ क्यों? इसकी गहराई में जाने की जरूरत है चूंकि अल्पमत शासक वर्ग के खिलाफ आतंकवादी भी अल्पमत में होता है और 90 प्रतिशत जनता का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए शोषित जनता की प्रतिक्रिया को सीमित रूप देने के लिए शोषक शोषक वर्ग ने भी अपने क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया को अल्पमत ही नहीं बल्कि एक व्यक्ति के खिलाफ स्वरुप देना चाहता है।

इसलिए सर्वप्रथम तो जार्ज बुश ने एक शब्द में इस्लामिक आतंकवाद की संज्ञा दिया जिससे कि बहुमत को इस्लाम बनाम अन्य किया जा सके और फिर इस्लामिक आतंकवाद से भय खाए या डरे तो इसे मात्र एक व्यक्ति ओसामा बिन लादेन के उपर केन्द्रित किया जा सके ताकि इस्लामिक जनता को अलग किया जा सके, जबकि रूस के समाजवाद को ध्वस्त करने के लिए उसी लादेन का
पूंजीवादियों (अमेरिका) के द्वारा उपयोग किया गया था।

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