राजनीति का अपराधीकरण
सत्ता और संपत्ति में घालमेल है, यानि दोनों एक दूसरे में परिवर्तित होते रहते हैं। सत्ता का धर्म सामंती होता है। सामंती चरित्र कबिले का धर्म होता है। प्राचीन काल से आज तक कबीलों ने राज्य का का निर्माण किया है। आज पूंजीवादी शक्ति की प्रधानता बढ गयी है यानि संपत्ति की प्रधानता बढ गयी और सामंतवादी शक्ति सुप्त अवस्था में चला गया है, इसलिए पूंजीवादी लोकतंत्र पुराने सामंतवाद को कमजोर करने के लिए एक दूसरे को संपत्ति से मदद करते हैं और उसे गुंडो के रूप में इस्तेमाल भी करते है, इस अवस्था को राजनीति का अपराधीकरण कहते है, यानि राजनीति सत्ता में बने रहने के लिए अपराध का सहारा लेती है। लेकिन कुछ समय बाद यही गुंडा (अपराधी ) जब राजनिति में प्रवेश कर सांसद और विधायक बन जाता तो है वह अवस्था राजनीति का अपराधीकरण नहीं बल्कि अपराधी का राजनितिकरण हुआ।
अपराधी भी दो प्रकार के होते हैं एक आर्थिक अपराधी और दूसरा शारीरिक अपराधी और दोनों अपराधी एक दूसरे के सहयोगी होते हैं। लगभग 2-1 राजनितिक दल को छोड़कर सभी दल अपराधी का उपयोग करता है और जिस राजनितिक दल को आर्थिक अपराधी का सहयोग जितना अधिक मिलता है वह उतना ताकतवर होकर आता है। यह अवस्था हमेशा से रहा है लेकिन जब से जनता का राजनितिकरण हुआ है, अपराधीकरण की प्रक्रिया भी तीव्र हुआ है। आजादी के बाद सामंत मजबूत स्थिति में था इसलिए आम जनता उनकी बातों को ही शिरोधार्य मानकर कांग्रेस पार्टी को मत दिया करते थे और जब जनवादी शक्ति और सामाजिक न्याय की शक्ति के द्वारा जनता को राजनितिक चेतना से तैयार किया गया और जब आम जनता अपने मन से अपना राजनीतिक मत (वोट ) देना चाहा तो सामंती शक्ति के द्वारा या तो आम जनता को धमकाना शुरू किया गया या उनके मत जबर्दस्ती लुटने की शुरूआत की गयी।
दुर्भाग्यवश राजनीति एक ऐसा विषय है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को विशेषज्ञ मानता है चाहे उसने इस विषय का क्रमबद्ध अध्ययन किया हो अथवा नहीं। दूसरी परिभाषा जो राजनिति की है –शासन करने के लिए अपनायी गयी नीति को ही राजनीति कहते हैं। राजनीति सत्ता में पहुंचने का एक जरिया है, एक रास्ता है। सत्ता का अपना कोई वजूद नहीं होता है। सत्ता एक प्रेत है, एक मुखौटा है जो जिस राजनीति के चेहरे पर मुखौटे के रूप पहनी जाती है राजनीति सत्ता की बात बोलने लगती है। सत्ता का धर्म है निरंकुश होना, यानि सत्ता निरंकुश हुए बिना शासन कर ही नहीं सकती है, इसलिए निरंकुशता ही अपराध है। कहने का मतलब यह है कि राजनीति जब से लोगों के दिमाग में आई, तब से अपराध उसका अभिन्न अंग बन गया।
सोमवार, 16 नवंबर 2009
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