मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

आतंकवादी का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

आतंकवादी का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

कोई व्यक्ति आतंकवादी क्यों बनता है। क्यों कोई अपनी जान हथेली पर लेकर किसी निश्चित उद्देश्य, किसी मंजिल को हासिल करने के लिए तैयार हो जाता है। क्यों एक सुरक्षित आदमी जिसे अपनी जिन्दगी में सब कुछ प्राप्त हो चुका है, उस सबको त्याग कर खतरों से भरा आतंकवाद का रास्ता चुनता है। अभी कुछ ही दिन पहले अलकायदा से जुड़ा एक आदमी पकड़ा गया। जांच करने पर पता चला कि वो अमेरिकी वैज्ञानिक था जो अलकायदा के लिए काम कर रहा था। आतंकवादियों के स्वाभाव के बारें में कहा जाता है कि वे या तो बोलते ही नहीं या उतना ही बोलते हैं जितना आवश्यक हो।

एक मानसिक रोगी आतंकवादी नहीं हो सकता है क्योंकि मानसिक रोगी अनुशासन में नहीं रह सकता। वह आदेशों का पालन नहीं कर सकता, इसलिए कि आतंकवादी को एक सख्त अनुशासन में रहता है। उसे उपर के आदेशों का ईमानदारी व दक्षता से पालन करना होता है। उसकी आस्था किसी न किसी आदर्श, सिद्धांत या धर्म में होती है। उसके मन में किसी वास्तविक या काल्पनिक अन्याय व शत्रु के खिलाफ आक्रोश भरा रहता है। इस आक्रोश को यह अत्यधिक बर्बर व हिंसक गतिविधियों के जरिए प्रगट करता है। इस तरह के अन्याय के प्रकार अलग-अलग देश व समाज में भिन्न हो सकते हैं जैसे असम के उल्फा के सदस्यों में इस बात के लेकर आक्रोश है कि भारत सरकार वहां के निवासियों के साथ अन्याय कर रही है। लिट्टे के सदस्यों में यह भावना थी कि श्रीलंका के बहुसंख्यक भाषा-भाषी उनके साथ न्याय नहीं कर रहे हैं। नक्सलवादी या माओवादी भारत की वर्तमान सामाजिक आर्थिक व्यवस्था को अन्यायपूर्ण मानता है और सोचता है कि जब तक इस समाज व्यवस्था को जड़मूल से नहीं उखाड़ फेंकेगा चैन से नहीं बैठेगा। नेपाल के माओवादी वहां के राजतंत्र को शोषण का सबसे बड़ा कारण मानते थे।

जो मुस्लिम युवक अंतराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न है। उनकी सोच है कि पश्चिम के राष्ट्रों ने मुसलमानों के साथ अन्याय किया है। फिलस्तीन को लेकर सारी दुनिया के मुसलमान पश्चिमी राष्ट्रों खासकर अमेरिका से खफा है, इसलिए तो अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में तो कभी इंगलैंड के ग्लासगो हवाई अड्डे पर आतंकवादी हमला होते हैं।

आतंकवाद खत्म हो सकते है अगर विश्व के जितने भी इस्लामिक देश है वहां से अमेरिकी सरकार अपनी सेना को वापस बुला लें, लेकिन अमेरिका सेना वापस क्यों बुलाएगा। वहां तो सत्ता पूंजीपतियों के हाथ में है, जिसका मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना है। आतंकवादी अपनी बर्बरता किससे दिखाते हैं- हथियार से और हथियार बनाता कौन है और सप्लाई कौन करता है। सबसे अधिक हथियार तो खुद अमेरिका बनाता है, इसलिए सबसे बड़ा तो आतंकवादी तो स्वंय अमेरिका है, जो आतंकवाद के पनपने में मदद करता है। गौर से सोचिए आज अफगानिस्तान में एक लाख से अधिक अमेरिकी सेना और साथ में नाटो सेना भी है। क्या अफगानिस्तान की स्थिति इतनी बदतर है कि यदि अमेरिका सेना वहां नहीं हो तो अफगानिस्तान पूरे विश्व के लिए खतरा पैदा हो जाएगा जिसे ठीक करने का ठेका अमेरिका अपने उपर ले रखा है। एक अफगानिस्तान ही क्यों दुनिया के 123 देश में अमेरिकी सेना मौजूद है, तो ऐसे में आतंक क्यों नहीं और आतंकवादी क्यों नहीं ?
आतंकवादी का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

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