गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

अराजकता और शांति

अरजकता और शांति

जीव विज्ञान की प्रयोगशाला में मेढक के शरीर को चिड़फार करने से पहले उसे क्लोरोफार्म सुंघाया जाता है जिससे कि चीड़फार के दौरान मेढक छटपटाए नहीं, इससे चिड़फार करने में और मानव शरीर विज्ञान को समझने में सुविधा होती है। इसी तरह मानव शरीर पर मेडिसीन (दवाई) का असर जानने के लिए बन्दर एवं जेल के कैदी पर प्रयोग किया जाता है। क्योंकि बन्दर और कैदी का अपना स्तित्व नहीं होता है। उसी प्रकार समाज विज्ञान में कोई प्रयोग करने के लिए शासक वर्ग दो वर्ग को अपना साधन बनाता है, एक है दलित वर्ग और दूसरा नारी। ये दोनों ही वर्ग मूक वर्ग होते हैं, इसलिए पूरे देश में राजसत्ता के संघर्ष में प्रयोग के लिए इसी दो वर्ग को निशाना बनाया जाता है।

आज कोई भी वर्ग अपने प्रतिद्वन्द्वी को सत्ता से हटाने के लिए दलित और नारी को ही अपना हथियार बनाता है और अखबार के माध्यम से दलित और नारी पर अत्याचार की कहानी बताता है और देश में अराजकता की सुरीली राग छेड़ता है। लेकिन शासक वर्ग अराजकता से भयभीत क्यों है ?

इसे समझने के लिए भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जो एक दार्शनिक के अंदाज से धर्म तुलनात्मक दृष्टि में लिखते हैं कि- अराजकता और विद्रोह किसी भी समाज की प्रगति के लिए पहली शर्त है और इसके बगैर प्रगति नहीं हो सकती है। जाहिर है कोई भी शासक वर्ग जड़ता के सिद्धांत से अभिभूत होता है और वह यथास्थिति बनाए रखना चाहता है जिससे कि उसकी स्थिति में परिवर्तन न हो। इसलिए तमाम पूंजीवादी चाटुकार बुद्धिजीवी जो बिना श्रम के जीते हैं और अपनी लेखनी को बेचकर समाज के परिवर्तन विरोधी शक्ति के साथ एकाकार होकर शांति की चाह में भटकते हैं और हायतौबा मचाते हैं। जबकि इसी बुद्धजीवी वर्ग के द्वारा मूक जनता को क्लोरोफार्म सुंघाया जाता है। मूक जनता को शांत रहने के लिए आज पूरे देश को विदेशों के हाथों बेचा जा रहा है। जनता जीने में असमर्थ हो रही है और बुद्धिजीवी जनता को शांति और धर्म का घूंट पिला रही है जिससे कि आम जनता अचेतन अवस्था में पड़ी रहे। यही परिवर्तन विरोधी शक्ति पूरे देश में जनता को धर्म का अफीम खिलाकर मंदिर- मस्जिद में अचेतन अवस्था में रहने के लिए विवश करता है और स्वयं संपूर्ण धरती का भोग करता है। लेकिन भूख से तड़पती भूखी जनता को असहनीय पीड़ा और छटपटाहट होती है तो उसे ही अराजकता कहा जाता है और यही अराजकता जब उनके लूट में खलल पैदा करती है तो धर्म के ठेकेदार का सहारा लिया जाता है। उनके लूट में खलल पैदा न हो, इसलिए ये शासक वर्ग अराजकता से भयभीत होते हैं।

देश के किसान मजदूर का बेटा देश की रक्षा में हमेशा तत्पर रहता है, उसी सैनिक को बंग्लादेश की सेना के द्वारा जघन्य हत्या कर दी जाती है फिर भी शांति का पाठ पढाया जाता है, और जब अभिजात वर्ग का बेटा हवाई जहाज में अपहृत होता है तो सारा प्रेस जगत और इलोक्ट्रॉनिक मीडिया हायतौबा मचाकर देश के विदेश मंत्री को आतंकवाद के मुखिया को साथ लेकर अफगानिस्तान की घाट पर मुक्त कराने के लिए प्रेरिता करता है।

यही है अराजकता और शांति का अंतर्द्वन्द्व

1 टिप्पणी:

  1. aapne shuruat to acchi ki per likhne ke dauran aapka link ya length garbada gaya hai. koshish acchi hai. kabile tarif hai. thora sa sharpness aur laiye; phal ka shwad mitha jarur milega.

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