बुधवार, 9 दिसंबर 2009

आतंकवाद क्यों

आतंकवाद क्यों

जब कोई बड़ी शक्ति अपने अधीनस्थ जनता को जीवन जीने के अधिकार से वंचित करती है तो बहुमत में मूक जनता उस अत्याचार को अपनी नियती मान कर मौन हो जाती है, लेकिन उसी अत्याचार की प्रतिक्रिया में कुछ सीमित संख्या में आदमी जीवन जीने की लालसा में जीवनलीला को ही ध्वस्त करने पर उतारु हो जाता है जिसे तथाकथित बुद्धिजीवि शब्दजाल की रचना करते हैं और आतंकवाद, उग्रवाद, नक्सलवाद, माओवाद, अलगाववाद, विद्रोही आदि का नाम देते हैं।

विश्व का शासक वर्ग जब किसी भूखंड की सीमा से बंधा नहीं है और पूंजी को उदार बनाकर पूरे विश्व में अबाधगति से प्रविष्ट करता है तो फिर श्रमशक्ति (जनता) को उदार बनाकर विश्वभ्रमण के अधिकार से वंचित कर भूखंड में आबद्ध क्यों किया जाता है।

विश्व के समस्त शाषकों की एकजूटता के कारण ही जब अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने ईराक में बमबारी किया तो विश्व की जनता द्वारा सारे विश्व में युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन किया गया, यहां तक कि स्वंय अमेरिका और ब्रिटेन में भी भारी प्रदर्शन हुआ। इसी विश्व की जनता की एकजूटता तो तोड़ने के लिए पहले उसे इस्लामिक आतंकवाद का नाम दिया गया और फिर उसे ओसामा-बिन-लादेन के उपर केन्द्रित कर दिया गया जबकि हकीकत यह है कि लादेन कोई व्यक्ति नहीं बल्कि शोषित जनता की प्रतिक्रिया है। भले ही वह इस्लाम धर्म को मानता हो और अपनी सुविधा के अनुसार इस्लामिक क्रांति की बात करता हो क्योंकि कोई भी विद्रोही अपना समर्थन जुटाने के लिए धर्म की बात करता है, समर्थक वर्ग तो आखिर गरीब जनता ही होती है।

इसलिए विश्व के तमाम इस्लामिक शासक अमेरिकी साम्राज्य के पीछे है और उस देश की गरीब जनता ओसामा बिन लादेन के समर्थन में खड़ी हो गई है। ध्यान देने की बात है कि गरीब जनता जिस किसी के साथ हो जाए, शोषक वर्ग विचलित हो जाता है। आखिर गरीबों के हक की लड़ाई का अंतिम विकल्प बचता ही क्या है ? अंतिम विकल्प है विद्रोह, जिसे आतंकवाद, उग्रवाद माओवाद, नक्सलवाद और अलगाव का नाम पूंजीवादी सामंती बुद्धिजीवि देते हैं।

आखिर विश्व शब्दकोष में अभी तक आतंकवाद को पारिभाषित क्यों नहीं किया गया है। यहां तक कि विश्व पूंजीवादी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अभी तक इसे पारिभाषित क्यों नहीं किया है, क्योंकि पारिभाषित करने पर स्वयं शासक वर्ग उस परिभाषा के शब्दजाल में उलझ जाएगा। लेकिन ऐसा कब तक चलेगा।

झरना के गतिशील जल में किटाणु पैदा नहीं होता लेकिन जल जब स्थिर हो जाता है तो स्थिर जल में किटाणु पैदा हो जाता है, उसी प्रकार जब कोई भी व्यस्था गतिहीन अवस्था में होती है तो मंदी का दौर शुरू होता है और जब मंदी का दौर शुरू होता है तो अराजकता, आतंकवाद के रूप में उस सड़ी हुई व्यवस्था में किटाणु के रूप में उत्पन्न होता है और शासक वर्ग हर किटाणु को नष्ट करने के लिए हथियार का इस्तेमाल करता है लेकिन उस सड़ी हुई व्यवस्था को ठीक नहीं करता है जिनसे इन किटाणुओं का जन्म होता है। इसलिए जब तक व्यवस्था में गति नहीं प्रदान किया जाता है तब तक आतंकवाद के किटाणु पनपते रहेंगे आतंकवाद का नाश संभव नहीं। उस सड़ी हुई व्यवस्था को बनाए रखने के लिए शासक वर्ग गरीब जनता को हजारों वर्गों में बांटकर रखता है जिसे हम जाति, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्र, भाषा, देश आदि के नाम से जानते हैं।

इसलिए जरूरी है कि उस सड़ी हुई व्यवस्था का विरोध किया जाए जिसे शासक वर्ग बनाए रखना चाहता है।

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