क्या होता है ये वाद
नक्सलवाद, माओवाद, उग्रवाद और आतंकवाद
भाग 3
आतंकवाद को अभी तक परिभाषित नहीं किया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ में जब इसे परिभाषित करने की बात आई तो अमेरिका ने इसे मानने से इनकार कर दिया क्योंकि अमेरिका स्वतन्त्रता आन्दोलन को भी आतंकवाद करार देता है और अन्य देश स्वतन्त्रता आन्दोलन को आतंकवाद की श्रेणी में रखने के लिए तैयार नहीं हैं, फिर भी सामान्य तौर पर राज्य के विरूद्ध जब गुरिल्ला युद्ध किया जाता है तो राज्य के द्वारा उसे आतंकवाद घोषित किया जाता है क्योंकि राज्य शक्तिशाली होता है। आज के समय में या कहें कि वर्तमान समय में कोई भी समूह राज्य के खिलाफ आमने- सामने की लड़ाई नहीं जीत सकता है। इसलिए जनता का एक छोटा सा हिस्सा गुरिल्ला युद्ध ही करता है और आतंक पैदा करता है। इसलिए उसे आतंकवादी करार दिया जाता है जैसे अपने समय सन 1627 में शिवाजी भी गुरिल्ला युद्ध के द्वारा ही औरंगजेब को परास्त कर अपना राज्य स्थापित कर पाए थे।
12 से 14 सितंबर 2005 को न्यूयार्क में 180 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की 60 वीं वर्षगांठ मनाई। इसमें अमेरिका और ब्रिटेन ने आतंकवाद का मुद्दे बड़े जोर शोर से उठाया लेकिन जब इसे परिभाषित करने की बात आई तो वे पीछे हट गए। टोनी ब्लेयर का सुझाव था कि आतंकवाद को और ज्यादा गैर-कानूनी करार दिया जाए। ब्रिटेन के प्रस्ताव का पाकिस्तन सहित अनेक इस्लामिक देशों ने विरोध किया। फिलिस्तीन मुक्ति आन्दोलन के कारण अरब जगत ने भी इसमें असहमति जतायी। इस प्रकार आतंकवाद को परिभाषित होने का मौका संयुक्त राष्ट्र संघ में भी नहीं मिल पाया।
9 मार्च 2010 को दैनिक भास्कर में छपी एक खबर के अनुसार असम राज्य सरकार विभिन्न शिविरों में रह रहे करीब 2500 उग्रवादियों के भोजन पर हर महीने 75 लाख रूपय खर्च कर रही है। ऐसा असम में शांति प्रक्रिया में उग्रवादियों के शामिल होने के तहत किया जा रहा है। अगर उग्रवादी इतने ही अधिक खतरनाक होते हैं तो फिर उन्हें जीवति रखने की जरूरत ही क्या है, सरकार को तो उन्हें मार देना चाहिए ?
मुद्दा वाद है या वादी। सरकार के द्वारा ज्यादा जोर वादी पर दिया जाता है यानी उसके द्वारा किए गए कामों पर। वाद पर जोर नहीं दिया जाता है जबकि समझने की जरूरत वाद को है, वादी तो हमारे समाने होता है उसके द्वारा किया गया काम दिखता है लेकिन वाद नहीं दिखता है, वो छिपा हुआ होता है। वाद का प्रदर्शन किया गया कार्य होता है जो वादी को निर्धारित करता है।
बिल्ली (cat ) बाघ की मौसी कहलाती है। उस बिल्ली को एक कमरे में बन्द कर दिया जाता है, जहां से भागने का कोई उपाय नहीं है । कुछ समय के बाद कमरे को खोलकर कुछ आदमी बिल्ली को मारने का प्रयास करता है। जब कमरा बंद था, उस समय तक बिल्ली शांत रहती है या इधर-उधर से बाहर निकलने का प्रयास करती है, लेकिन जब बंद कमरे में उसे मारने का प्रयास किया जाता है तो बिल्ली पहले इधर-उधर भागती है अपनी जान बचाने का प्रयास करती है। छटपटाती है यानी अपने आपको जीवन जीने में असहाय महसूस करती है। जब वो अपनी जान बचाने में असमर्थ पाती है तो आक्रमण का सहारा लेती है।
बिल्ली जब अकेले बंद कमरे में हलचल पैदा करती है तो बाहर बैठा शासक वर्ग उस छटपटाहट को जनता से छुपाता है ताकि जनता कभी यह नहीं जान पाए कि बिल्ली छटापटा क्यों रही है। शासक वर्ग हलचल का नाम पहले वादी देता है ताकि जब शासक वर्ग उस वादी को खत्म करने का प्रयास करे तो जनता शांत रहे और यही समझे कि उसने एक बूरे काम को अंजाम दिया। बिल्ली के द्वारा किया गया हलचल ही तो वाद है और बिल्ली वादी।
वाद को सर्मथन देने वालों को समझना चाहिए कि वाद कोई अच्छी बात नहीं होती है। वाद सिर्फ और सिर्फ जनता की छटपटाहट का नाम है यानी जनता जब अपने आपको जीने में असहाय महसूस करती है।
समाप्त
नक्सलवाद, माओवाद, उग्रवाद और आतंकवाद
भाग 3
आतंकवाद को अभी तक परिभाषित नहीं किया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ में जब इसे परिभाषित करने की बात आई तो अमेरिका ने इसे मानने से इनकार कर दिया क्योंकि अमेरिका स्वतन्त्रता आन्दोलन को भी आतंकवाद करार देता है और अन्य देश स्वतन्त्रता आन्दोलन को आतंकवाद की श्रेणी में रखने के लिए तैयार नहीं हैं, फिर भी सामान्य तौर पर राज्य के विरूद्ध जब गुरिल्ला युद्ध किया जाता है तो राज्य के द्वारा उसे आतंकवाद घोषित किया जाता है क्योंकि राज्य शक्तिशाली होता है। आज के समय में या कहें कि वर्तमान समय में कोई भी समूह राज्य के खिलाफ आमने- सामने की लड़ाई नहीं जीत सकता है। इसलिए जनता का एक छोटा सा हिस्सा गुरिल्ला युद्ध ही करता है और आतंक पैदा करता है। इसलिए उसे आतंकवादी करार दिया जाता है जैसे अपने समय सन 1627 में शिवाजी भी गुरिल्ला युद्ध के द्वारा ही औरंगजेब को परास्त कर अपना राज्य स्थापित कर पाए थे।
12 से 14 सितंबर 2005 को न्यूयार्क में 180 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की 60 वीं वर्षगांठ मनाई। इसमें अमेरिका और ब्रिटेन ने आतंकवाद का मुद्दे बड़े जोर शोर से उठाया लेकिन जब इसे परिभाषित करने की बात आई तो वे पीछे हट गए। टोनी ब्लेयर का सुझाव था कि आतंकवाद को और ज्यादा गैर-कानूनी करार दिया जाए। ब्रिटेन के प्रस्ताव का पाकिस्तन सहित अनेक इस्लामिक देशों ने विरोध किया। फिलिस्तीन मुक्ति आन्दोलन के कारण अरब जगत ने भी इसमें असहमति जतायी। इस प्रकार आतंकवाद को परिभाषित होने का मौका संयुक्त राष्ट्र संघ में भी नहीं मिल पाया।
9 मार्च 2010 को दैनिक भास्कर में छपी एक खबर के अनुसार असम राज्य सरकार विभिन्न शिविरों में रह रहे करीब 2500 उग्रवादियों के भोजन पर हर महीने 75 लाख रूपय खर्च कर रही है। ऐसा असम में शांति प्रक्रिया में उग्रवादियों के शामिल होने के तहत किया जा रहा है। अगर उग्रवादी इतने ही अधिक खतरनाक होते हैं तो फिर उन्हें जीवति रखने की जरूरत ही क्या है, सरकार को तो उन्हें मार देना चाहिए ?
मुद्दा वाद है या वादी। सरकार के द्वारा ज्यादा जोर वादी पर दिया जाता है यानी उसके द्वारा किए गए कामों पर। वाद पर जोर नहीं दिया जाता है जबकि समझने की जरूरत वाद को है, वादी तो हमारे समाने होता है उसके द्वारा किया गया काम दिखता है लेकिन वाद नहीं दिखता है, वो छिपा हुआ होता है। वाद का प्रदर्शन किया गया कार्य होता है जो वादी को निर्धारित करता है।
बिल्ली (cat ) बाघ की मौसी कहलाती है। उस बिल्ली को एक कमरे में बन्द कर दिया जाता है, जहां से भागने का कोई उपाय नहीं है । कुछ समय के बाद कमरे को खोलकर कुछ आदमी बिल्ली को मारने का प्रयास करता है। जब कमरा बंद था, उस समय तक बिल्ली शांत रहती है या इधर-उधर से बाहर निकलने का प्रयास करती है, लेकिन जब बंद कमरे में उसे मारने का प्रयास किया जाता है तो बिल्ली पहले इधर-उधर भागती है अपनी जान बचाने का प्रयास करती है। छटपटाती है यानी अपने आपको जीवन जीने में असहाय महसूस करती है। जब वो अपनी जान बचाने में असमर्थ पाती है तो आक्रमण का सहारा लेती है।
बिल्ली जब अकेले बंद कमरे में हलचल पैदा करती है तो बाहर बैठा शासक वर्ग उस छटपटाहट को जनता से छुपाता है ताकि जनता कभी यह नहीं जान पाए कि बिल्ली छटापटा क्यों रही है। शासक वर्ग हलचल का नाम पहले वादी देता है ताकि जब शासक वर्ग उस वादी को खत्म करने का प्रयास करे तो जनता शांत रहे और यही समझे कि उसने एक बूरे काम को अंजाम दिया। बिल्ली के द्वारा किया गया हलचल ही तो वाद है और बिल्ली वादी।
वाद को सर्मथन देने वालों को समझना चाहिए कि वाद कोई अच्छी बात नहीं होती है। वाद सिर्फ और सिर्फ जनता की छटपटाहट का नाम है यानी जनता जब अपने आपको जीने में असहाय महसूस करती है।
समाप्त
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