शुक्रवार, 12 मार्च 2010

ज्योति बसु – एक विलक्षण व्यक्तित्व

ज्योति बसु – एक विलक्षण व्यक्तित्व

                                                  भाग 2


 95 साल की उम्र में ज्योति बसु इस दुनिया से गुजर गए। पूंजीवादी मीडिया किसी व्यक्ति की लोकप्रियता को स्वीकार नहीं करता जबकि आज की तारीख में समूचे बंगाल में उनसे ज्यादा लोकप्रिय नेता नहीं हुआ। बंगाल कम्युनिष्ट पार्टी ज्योति बसु की देन है अन्यथा केरल में तो हर पांच साल में सरकार बदलती रही, लेकिन बंगाल स्थिर रहा। उन्होंने बंगाल में कभी क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद को पनपने नहीं दिया जो की अपने आप में एक बड़ी उपलब्धी है। एक व्यक्ति के रुप में समुचे देश में मील का पत्थर साबित हुए ज्योति बसु जिन्होने पूरे 35 साल तक संयुक्त मोर्चा को स्थापित रखा।

भूमि सुधार के बाद जो दूसरा सबसे बड़ा काम किया वह था गुप्त मतदान से ट्रेड युनियनों की मान्यता। इस प्रकार की मान्यता पहली बार बंगाल में ही लागू की गई। इस विधेयक को लागू करने में केन्द्र में पूरे सात साल तक राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर नहीं किया था। इस विधेयक पर हस्ताक्षर करने की मांग को लेकर अखिल भारतीय आन्दोलन के बाद ही राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किया था। मुख्यमंत्री रहते हुए वे हड़ताली कर्मचारी, मजदूरों की सभा को संबोधित किया करते थे।

1962 में देश पर चीनी हमले की निंदा करने में झिझक दिखाने पर पूरे देश में कम्युनिस्ट विरोधी लहर सी चल पड़ी। प्रमुख कम्युनिस्ट नेताओं की गिरफ्तारियां होने लगी थी। ऐसे समय में उन्होने कम्युनिस्ट पार्टी का पक्ष रखने का कई बार प्रयास किया पर विफल रहे। उन्होने कहा कि यदि एक भी कम्युनिस्ट के त्याग से देश का भला होता है तो वे खुद अपने प्राण देने के लिए तैयार हैं।

1969 में अजय मुखर्जी ( बंगाल कांग्रेस) के मंत्रिमंडल में ज्योति बसु गृहमंत्री थे। दिल्ली के इशारे पर उन्हीं की पुलिस ने उनके खिलाफ विद्रोह कर दिए थे। ज्योति बसु के खिलाफ नारा लगाते हुए 5-10 सिपाही रायटर्स बिल्डिंग के उनके चेम्बर में पहुंच गया। तब ज्योति बसु गरजे- क्या समझते हो, तुम्हारे हाथ में बंदूक है तो जो चाहोगे वही कर लोगे, बाहर निकलो और फिर सिपाही दुम दबारकर बाहर निकले। ये था ज्योति बसु का आत्मबल

प्रणव मुखर्जी के 2004 के लोकसभा चुनाव के बारे में कहना है कि उस समय मनमोहन सिंह सरकार बनवाने में ज्योति बाबू ने सबसे बड़ी भूमिका अदा की थी।

परमाणु करार पर प्रणव मुखर्जी और प्रकाश करात के बीच बातचीत में कहा गया था, विरोध कीजिए पर समर्थन वापस नहीं लीजिए। करात ने कहा था, हम सरकार गिरते देखने चाहते हैं। जबाव मिला तब तो आपको बंगाल में पतन देखना होगा। ( नई दुनिया 27-01-10 )। ऐसे समय में भी ज्योति बसु नहीं चाहते थे कि सरकार गिरे, जबकि उनकी ही पार्टी माकपा सरकार गिराने पर उतारू थी। सरकार गिराने के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना था कि अगर सरकार गिरानी ही थी तो मुझे प्रधानमंत्री बनाया ही क्यों। ज्योति बसु का भी अपनी पार्टी को कहना था कि खिलाफ करो, रोडमार्च निकालो, लेकिन सरकार को मत गिराओ। सरकार गिराने के अंतिम समय तक ज्योति बसु चाहते थे कि माकपा परमाणु समझौते के मुद्दे पर सहमति की संभावनाओं को तलाशे न कि सरकार गिराने की।

अफसोस इस बात का है कि जिस कम्युनिष्ट पार्टी को उन्होंने बंगाल में स्थापित किया, उसी कम्युनिष्ट पार्टी को जब उन्हे पूरे देश में स्थापित करने की बात आई तो वे पीछे हट गए।

                                                                                                                                        समाप्त

2 टिप्‍पणियां:

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