सोमवार, 15 मार्च 2010

क्या होता है ये वाद

क्या होता है ये वाद
नक्सलवाद, माओवाद, उग्रवाद और आतंकवाद

                                     भाग 2
अंग्रेजी राज में दलित, आदिवासी कोल, भील आदि जनजातियों ने ही जन विद्रोह किया था और वह भी भारतीय जमींदारों के खिलाफ जिसे सुविधाभोगी वर्ग ने आजादी की लड़ाई कहा था। गरीब जनता को आजादी से क्या मतलब, वह तो उस समय भी गुलाम थी और आज भी गुलाम है। इसलिए अगर सुविधाभोगी वर्ग अपने को आजाद रखना चाहता है तो उसे 85 करोड़ जनता को जीने का अधिकार देना ही होगा। अन्यथा देश 50 प्रतिशत गुलाम हो चुका है। देश को विकसित होने का क्या अर्थ जब देश की जनता यानी देशवासी ही जीवन जीने में अपने आप को असहाय महसूस करें। जनकल्याण के नाम पर 85 फीसदी पैसे का लूट नौकरशाहों के द्वारा होता है इसलिए जनकल्याण की सारी योजनाओं को बन्द कर जनता से सीधे काम लेकर उसकी क्रय शक्ति को बढ़ाना चाहिए।

अत: सरकार को चाहिए कि रोटी, कपड़ा और मकान जनता को उपलब्ध होने की स्थिति में लाने के लिए जनता के क्रय शक्ति में वृद्धि करें नहीं तो सिर्फ कुछ को भीख देने से काम नहीं चलेगा। किसान और खेतिहर मजदूर एक दूसरे पर आश्रित होता है। कृषि उत्पादन का मूल्य अगर हासिए पर होगा तो स्व्यं किसान भी खेतिहर मजदूर को जीने लायक मजदूरी नहीं दे सकेगा और वैसी स्थिति में ग्रामीण मजदूर शहर की ओर पलायन करेगा और बेरोजगार होने पर अराजकता को जन्म देगा और फिर आतंकवाद, माओवाद, नक्सलवाद आदि नाम लेकर जनता की हत्या की जाएगी और फिर अशांति, अराजकता का दौर शुरू हो जाएगा।

जब तक शासन में सामाजिक न्याय, धर्म निरपेक्षता और जनवादीकरण नहीं होगा। देश में आतंकवाद, नक्सवाद उग्रवाद की समस्या से निजात नहीं मिल सकता है और देश बुरी तरह से गुलामी की जंजीर में जकड़ जाएगा और हम अपनी आजादी खो देंग। अभी कुछ समय पहले एक अमेरिकन कंपनी ने जांच के नाम पर पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम को अपमानित किया और भारत सरकार डर के मारे इस बात की चर्चा तक नहीं कर सकी। क्या हम किसी पश्चिमी देश के राष्ट्राध्यक्ष को जांच के घेरे में ले सकते हैं। याद रहे कि किसी देश की रक्षा उस देश का किसान मजदूर ही कर सकता है सेना नहीं। सेना सिर्फ राज्य की रक्षा कर सकती है देश की रक्षा नहीं। एक हालिया उदाहरण अफ्रीकी देश नाइजर का है जहां से मंत्रिमंडल की बैठक से राष्ट्रपति को गिरफ्तार कर सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और देश का संविधान रद्द कर कर दिया। टेलीविजन पर सेना के प्रवक्ता ने तख्तपलट की जानकारी देते हुए जनता यानी किसान-मजदूर से शांत रहने की अपील की है। अगर सेना ही सब कुछ है तो फिर सेना को जनता से अपील करने की जरूरत ही क्या है। ध्यान रहे कि किसी भी देश की गुलामी उस देश के देशवासी पर निर्भर करती है जो कि किसान-मजदूर होता है सेना पर नहीं।


                                       क्रमश: जारी है....

1 टिप्पणी:

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