विदेशी सहायता का रहस्य
1962 के दिसंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने अपने भाषण में कहा – सहायता विश्व में अमेरिकी प्रभाव और अमेरिकी नियंत्रण रखने का प्रधान उपाय है। चूंकि सहायता का अधिकांश भाग ऋण होता है। इसलिए ऋण चुकाने का एकमात्र मार्ग है कच्चे माल का निर्यात और कच्चे माल की
कीमत मांग में उतार-चढाव होते रहने के कारण घाटे की संभावना रहती है। इसी घाटे को पूरा करने के लिए पुन ऋण लेने की आवश्यकता होती है और ऋण बना रहता है।
ब्रीटिश प्रो. रॉबिन्स ने कहा कि ऋण को देने का एकमात्र उद्देश्य यही देखना है कि इस ऋण की आवश्यकता सदा के लिए बनी रहे। कहने का मतलब है कि ऋण लेना वाला व्यक्ति हमेशा ऋण के जाल में फंसा ही रहे।
23 जनवरी, 2010 की दैनिक भास्कर में छपी एक खबर के मुताबिक अगले पांच साल में अमेरिका द्वारा पाक को 7.5 अरब डॉलर की असैन्य सहयता दी जाएगी। ये सहायता पाक को हमेशा बनी रहेगी।
विश्व बैंक का कहना है कि पिछले साल भारत में लगभग 35 खरब डॉलर का निवेश हुआ था। जबकि 2008 में 41 खरब डॉलर का निवेश था। (2 फरवरी 2010 की दैनिक भास्कर )। विश्व बैंक इस बात से चितिंत है कि उनका निवेश पिछले साल 2008 की तुलना में 2009 में निवेश घट कैसे गया।
पश्चिम बंगाल की वाम मोर्चा सरकार ने पहली बार पार्टी लाइन से अलग जाकर विश्व बैंक से कर्ज मांगा है। ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के लिए राज्य सरकार ने विश्व बैंक से दो सौ करोड़ डॉलर मांगे हैं। बंगाल सरकार के सूत्रों के अनुसार इस कर्ज में विश्व बैंक कोई ब्याज नहीं लेगा। ( 14-03-2010 नई दुनिया )
मंगलवार, 23 मार्च 2010
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kehna kya chah rahe ho, ye bhi to likho...fact to sabko maloom hai hi
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