सोमवार, 4 जनवरी 2010

शक्ति ही सच है

शक्ति ही सच है

कैनो उपनिषद में लिखा है कि जो ज्ञात है वह ब्रह्म नहीं है और जो ब्रह्म है वह ज्ञात नहीं है। इसी बात को शंकराचार्य ने कहा है दूसरे रूप में – जो दृश्य जगत है वह झूठ है और जो अदृश्य है वह सच है यानी संसार जो दिखाई पड़ता है वह मिथ्या है और ब्रह्म जो सच है दिखाई नहीं पड़ता है। भौतिक विज्ञान में जिसे हम शक्ति के नाम से जानते हैं दिखाई नहीं पड़ती है और जो वस्तु दिखाई पड़ती है उसे हम शक्ति नहीं कह सकते हैं।

यही बात इतिहास पर भी लागू होती है। सर्वप्रथम यह जानना जरूरी है कि इतिहास है क्या ? एक इतिहास पुरूष ने इसे परिभाषित करते हुए कहा कि घटनाओं के समीक्षात्मक विश्लेषण का नाम इतिहास है यानी किसी घटित घटना को जिस रूप में विश्लेषण किया जाएगा वही इतिहास कहलाएगा और विश्लेषण की स्वीकृति हमेशा शक्ति के द्वारा ही होगी। कहने का मतलब यह कि जो वर्ग शक्तिशाली है उसके द्वारा किया गया विश्लेषण ही सच होगा। यही कारण है कि जब भारत का इतिहास लिखा गया तो आजादी के 50 साल बाद तक हम सच उसे मानते रहे और जब देश में संघ परिवार शक्ति में आया तो फिर अपना इतिहास लिखा और घटनाओं का विश्लेषण अपने ढंग से किया और जनता से कहा गया कि भारत की जनता के लिए यही सच है। जब संघ परिवार की शक्ति क्षीण होगी तो जिस वर्ग का शासन होगा, उस वर्ग का अपना इतिहास होगा जिसे सच माना जाएगा। यानी इतिहास कोई यथार्थ घटना नहीं बल्कि घटना का विश्लेषण मात्र है या कहा जा सकता है विजेता वर्ग का विश्लेषण मात्र है।

इसलिए कार्ल मार्क्स ने इतिहास को वर्ग संघर्ष की कहानी स्वीकार किया है, इसलिए मजदूर के लिए वर्ग संघर्ष के द्वारा शक्ति प्राप्त करना ही एकमात्र उद्देश्य है। जो शक्तिहीन है उसका कोई इतिहास भी नहीं होता है यानी शोषितों का कोई इतिहास नहीं होता, इतिहास तो सिर्फ शासकों का होता है। इसलिए इतिहास को अमूर्त शक्ति बाह्य विश्लेषण ही कहा जा सकता है। इतिहास हमेशा वर्तमान की राजनीतिक जरूरत को ध्यान में रखकर लिखा जाता है। कई बार वह शासक या बड़ी शक्ति के द्वारा किसी के माध्यम से लिखवाया भी जाता है। एक महान इतिहासकार अपनी जिन्दगी में एक लाइन भी नहीं लिख पाया क्योंकि वह सही इतिहास लिखना चाहता था। एक लेखक की टिप्पणी थी कि मानव जाति अपना सही इतिहास कभी लिख ही नहीं सकता। हंस के संपादक ने कहा कि दरअसल इतिहास एक गढंत है, यह सिर्फ व्यवस्थाओं का खेल है जिसे सत्ता तय करती है।


कार्ल मार्क्स के शब्दों में मानव इतिहास दो वर्गों के बीच का संघर्ष मात्र है, इसलिए शोषितों का एकमात्र उद्देश्य वर्ग संघर्ष के जरिए शक्ति प्राप्त करना ही होना चाहिए न कि शासक वर्ग द्वारा परिभाषित आदर्श वाक्य। आदर्श हमेशा यथास्थितिवादी का एकमात्र हथियार होता है जिसका प्रयोग बलहीन(शक्तहीन) को यथास्थिति में रखने के लिए किया जाता है, इसलिए संघर्ष एकमात्र उपाय है, क्योंकि संघर्ष ही विकास है यानी कि विकास के लिए जरूरी है कि संघर्ष होने चाहिए। मानव सभ्यता अगर आजाद है तो आजादी का मतलब विकास होना चाहिए।

आज दुनिया की पूरी मिथालॉजी शक्ति के प्रतीक देवी-देवताओं के तानों बानों से ही बुनी हुई है। आज भी शक्ति का महत्व निर्विवाद है। अमेरिका की दादागिरी पूरी दुनिया में चल रही है तो इसलिए कि उसके पास सबसे अधिक सामरिक शक्ति और सम्पदा है। जिसके पास एटम बम नहीं है उसकी बात कोई नहीं सुनता, उसकी आवाज का कोई मूल्य नहीं है। गीता उसी की सुनी जाती है, जिसके हाथ में चक्र सुदर्शन हो। उसी की धौंस का भी कोई मतलब होता है और उसी की विनम्रता का भी। उन्नत सभ्यताओं में शक्ति पूजा की चीज नहीं होती। जो जीत जाता है वह पूज्य बन जाता है और जो हारता है वह पूजक। एक सभ्य समाज में नायकों की पूजा होती है, शक्तिमानों की नहीं। शक्तिमानों की पूजा कमजोर, काहिल और पराजित समाज करता है, क्योंकि वहां भी यानी कमजोर समाज में भी शक्ति की ही प्रधनता होती है, क्योंकि शक्ति ही सच है।

शब्द का अपना कोई अर्थ नहीं होता बल्कि अर्थ शब्द पर आरोपित होते हैं,इसलिए हर शब्द का अर्थ भी हर सौ साल में बदल जाते हैं और शब्द का अर्थ भी शक्ति यानी सत्ता पर निर्भर करता है, इसलिए अर्थ करने का अधिकार भी सिर्फ शक्तिशाली को ही रहता है और शक्तिहीन उस अर्थ को स्वीकार करते हैं। उसी प्रकार न्याय के बारे में भी सुकरात का कथन है कि – अन्यायी के हक में जो कुछ है वही न्याय है जाहिर है कि शब्द का अपना कोई अर्थ नहीं होता बल्कि अर्थ ही शब्द पर आरोपित होता है।

कवि दिनकर ने लिखा है- क्षमा शोभती उस भूजंग को जिसके पास गरल हो। उसे क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत, सरल हो। इसलिए शक्तिशाली से ही यह अपेक्षा की जाती है कि वह न्याय की भागीदारी में सहायक बने। कमजोर से न्याय की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है। कहने का मतलब है -

शक्ति ही सच है
बाकी सब झूठ है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बालक,
    यह भारत भूमि है यहाँ एक नहीं सैकड़ो बुद्ध हुए है और आगे भी होंगे तुम किस बुद्ध को श्रेष्ठ बता रहे हो ??????????????????

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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