बुधवार, 6 जनवरी 2010

वर्ग संघर्ष बनाम वर्ण संघर्ष

वर्ग संघर्ष बनाम वर्ण संघर्ष

मानव सभ्यता के विकास क्रम में विश्व में तीन वर्ग का उदय हुआ। पहला पुरोहित वर्ग दूसरा वर्ग शासक वर्ग और तीसरा किसान वर्ग, लेकिन बहुत से देश में चौथे वर्ग का भी उदय हुआ, जिसे गुलाम से पैदा हुआ वर्ग माना जा सकता है। शासक वर्ग वे थे जिन की राज्य की संपूर्ण भूमि पर अधिकार प्राप्त थे। आम जनता जो किसान वर्ग से आते थे उनसे शासक वर्ग भूमि पर खेती करवाते थे और उपज का खास हिस्सा प्राप्त करते थे। वे सामंत कहलाते थे। बाद में वे सामंतवर्ग कहलाने लगे। राज्य की सारी शक्ति इनमें ही निहित होती थी।

दूसरा वर्ग पुरोहित का था जो शासक वर्ग से दायभाग के नाम पर मंदिर एवं पुरोहित का खर्च चलाने के लिए राज्य से प्रप्त करते थे और किसान एवं गुलाम से खेती करवाते थे और मौज करते थे, या दूसरे शब्दों में पुरोहित वर्ग शासक वर्ग से मंदिर निर्माण हेतु प्राप्त जमीन पर गुलामों और किसानों से खेती करवाते थे और मंदिर के नाम पर सामंत और किसान वर्ग से दान पर बिना श्रम के मौज करते थे।

तीसरा वर्ग किसान का था। जो भूमिहीन था और सामंत और पुरोहित की जमीन पर खेती करता था और उपज का खास हिस्सा सामंत और पुरोहित को दिया करता था। इसी वर्ग से शिल्पकारी भी करवाया जाता था और मजदूरी भी। यानी सामंत और वर्ग ऐसे थे जो श्रम नहीं करते थे, लेकिन किसान के शोषण पर आराम तलब जिन्दगी जीते थे। संपूर्ण प्राकृतिक साधन पर उनका ही आधिपत्य था।

एक कड़वा सच यह भी है कि पहले दो वर्गों को बीच ही यानी कि शासक और पुरोहित के बीच ही अधिकार की लड़ाई चलती थी। यह लड़ाई सत्ता पर वर्चस्व की होती थी। जिसे धर्मसत्ता बनाम राजसत्ता की लड़ाई भी कहा जा सकता है। पहले धर्मसत्ता, राजसत्ता पर हावी था, लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद कालान्तर में राजसत्ता और धर्मसत्ता के बीच टकराहट हुआ। टकराहट की परिणति सामंतवाद, पूंजीवाद के रूप में बदल गया और पूंजीवाद में सामंतवाद सुसुप्ता अवस्था में चला गया। धर्मसत्ता राजसत्ता से परास्त हो गया। पूरे यूरोप में धर्मसत्ता कमजोर पड़ गई और पूंजीवाद हावी हो गया।

इसलिए आधुनिक युग में सिर्फ दो वर्ग रह गया। एक वर्ग जो बिना श्रम के परजीवी के रूप में समाज के सारे प्राकृतिक और भौतिक साधनों का उपभोग करता है और दूसरा वर्ग जो श्रम आश्रित हो गया, उसकी हालत दिन-ब-दिन खराब होते चला गया। जब-जब आम श्रमिक जनता की हालत खराब होती है तब-तब विचारों का एक महामानव समाज से बनता है। प्रचीन काल में गौतम बुद्ध के विचार महामानव के रूप में हुआ था तो आधुनिक काल में कार्ल मार्क्स के विचारों का उदय हुआ। कार्ल मार्क्स ने समाज के वर्ग चरित्र की वैज्ञानिक व्याख्या कर इसे वर्ग संघर्ष का नाम दिया। जिसे उन्होंने उत्पादक श्रमिक वर्ग और अनुत्पादक पूजीपति वर्ग का नाम दिया।

लेकिन भारत में अवस्था भिन्न है क्योंकि भारत यूरोप नहीं है जहां एक ओर यूरोप में पूंजीवाद के गर्भ से श्रमिक वर्ग का जन्म हुआ वहीं भारत में श्रमिक वर्ग मां के गर्भ से पैदा होता है। भारत में शासक वर्ग ने समाज को चार भाग में बांटा। पहला वर्ग ब्राह्मण दूसरा क्षत्रिय तीसरा वैश्य और चौथा शूद्र। कालान्तर में बौद्ध काल के बाद सिर्फ दो वर्ग का नाम दिया गया। एक ब्राह्मण और दूसरा शूद्र। भारत में क्षत्रिय और ब्राह्मण के योग से सवर्ण शब्द का निर्माण हुआ। वहीं वैश्य और शूद्र से निर्मित वर्ग को शासन की सुविधा के लिए 6000 जाति का निर्माण सीढीनुमा ढांचे में किया गया। इसलिए हिन्दुस्तान में युरोप का वर्ग नहीं है और जब वर्ग ही नहीं तो वर्ग संघर्ष का सवाल ही पैदा नहीं होता बल्कि हिन्दुस्तान में वर्ग की जगह वर्ण संघर्ष हो रहा है। जिसे मार्क्स ने भी भूल स्वीकार करते हुए कहा कि भारत में वर्ण संघर्ष ही संभव है और उसके बाद ही वर्ग संघर्ष हो सकता है। इसे इमीएस नम्बूदरीपाद ने भी स्वीकार किया, जिनके नेतृत्व में केरल में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी थी। बी. टी. रणदीवे ने भी स्वीकार किया, क्योंकि भारत में सत्ता और संपत्ति पर सवर्ण वर्ग का ही कब्जा है।

भारत में श्रम विभाजन नहीं श्रमिक विभाजन लागू है। भारत में जन्म के aसाथ ही उसके लिए श्रम नियत है। यहां हर काम पहले से तय है- चमार का पुत्र जूता ही बनाएगा बढई का बेटा बढई का ही काम करेग, यद्यपि यह श्रम विभाजन वर्तमान समय में सख्ती से लागू नहीं है। इसलिए आरएसएस इसे सख्ती से लागू करने की लड़ाई लड़ रहा है। क्योंकि इस देश के इतिहास में हमेशा वर्ण संघर्ष रहा है। यूरोप का इतिहास वर्ग संघर्ष का रहा है, वहीं भारत का इतिहास वर्ण संघर्ष का रहा है।

यूरोप में वर्ग को धर्म से नहीं जोड़ा गया जबकि भारत में वर्ण को धर्म से जोड़ा गया है। इसलिए भारत में हिन्दूधर्म को वर्णाश्रम धर्म कहा गया है और धर्म की आत्मा भी।

5 टिप्‍पणियां:

  1. बंधुवर,
    शुद्र के मन की दीनता (हीन-भावना ) की स्थिति, और सवर्ण के मन की अहम् (उच्च होने की भावना ) की स्थिति की तुलना किस प्रकार की जा सकती है ?
    अब तो इस तरह की बात नहीं है सरकार के प्रयासों से छुवाछूत हट चूका है और शुद्रो की स्थिति किसी भी प्रकार से सवर्णों से कम नहीं कही जा सकती है? आज शुद्र मुख्यमंत्री, मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष , सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जैसे पदों की भी शोभा बढ़ा रहे है / फिर भी आपके विवेचन से ये निम्न उदाहरण ही प्रकट हो रहा है

    एक आइ ऐ एस अधिकारी के ओहदे , अधिकार , ऐश्वर्य और एक चपरासी की दीनता , जी हजुरी और गरीबी को देखकर कोई समाजवादी ये कहे की दोनों के बीच इतना भेद क्यों ? (बिना यह जाने की जिन रातो को आइ ऐ एस ने पढ़ने में रतजगा किया था उस समय वो चपरासी मौज से नींद के आगोश में था )

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  2. बालक,
    यह भारत भूमि है यहाँ एक नहीं सैकड़ो बुद्ध हुए है और आगे भी होंगे तुम किस बुद्ध को श्रेष्ठ बता रहे हो ??????????????????

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  3. Bhai naveen apne subject to accha chuna hai; per patna nahi aap likhne ke kram main dishahin ho gaye hain. agar aap ise apne kisi dusre ainek se dekha hota to aisa nahi likhtay. khair, is pavitra bharat bhumi main ek nahi aneko budh huain hain. jitnay bhi litrate person huain hain kya we budh nahi hain.
    Aapne ek jagah ullekh kiya hai ki bharat main shramik maa ke garbh se paida hota hai; main is se sahmat nahi hoon. aap dekhain aaj her tabka ya her varn ek-dusre ke pesha ko aapna rahain hain; phir varn shanghars kaise?

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  4. मुक्तिबोध ने कहा है की हर आदमी के अन्दर उसकी जाती छुपी होती है
    चाहे वोह कितना ही खुद को प्रगतिवादी क्यों न कहे हिमांशु जी की
    टिपण्णी ने मुक्तिबोध को फिर सही साबित कर दिया.भारत में
    जाती और वर्ग गुंथे हुए है अतः वर्ण संघर्ष को वर्ग संघष का
    ही एक प्रकार के रूप में देखन की जरुरत है
    रही बात भारतीय समाज में दलितों की उच्च पदों पर
    उपस्थिति दर्ज कराने की तो आंकडे उठा कर देखे
    कई गलत धारणाये दूर हो जाएँगी

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  5. यहाँ कोई सैकड़ो बुद्ध नहीं हुए है,और इस भारत की भूमि पे सिर्फ एक ही बुद्ध पैदा हुए है जिसे भगवान गौतम बुद्ध कहा जाता है और जिनके उपदेशो से वैदिक सभ्यता की धज्जी उड़ गई थी.....और यहाँ पे लेखक सिर्फ एक ही बुद्ध की बात कर रहे है और वो गौतम बुद्ध है,मिश्र जी से निवेदन है उन सैकड़ो बुद्ध में से कोई दुसरे बुद्ध के बारे में बताये...

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